बुधवार, 2 मार्च 2022

विजेता अपने आप में

 यहाँ आपको जानकारी सिर्फ एक विजेता का बारे में बताने का प्रयास है उदाहरण जैसे सिकंदर महान  सिकंदर या कहें की अलेक्जेंडर द ग्रेट (356 ईपू से 323 ईपू) मकदूनियाँ, (मेसेडोनिया) का ग्रीक प्रशासक था। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है।स ना गया है। अपनी मृत्युआर तक वह उन सभी भूमि मे से लगभग आधी भूमि जीत चुका था,

सिकंदर के बहादुरी के किस्से भी स्कूल में पढ़ाई गए हैं हमें स्कूल में बताया गया है कि सिकंदर विश्व विजेता बनना चाहता था। विश्व विजेता सिकंदर ने अपने सभी आसपास की विद्रोहियों को खत्म करता गया कहा जाता है कि सिकंदर एक क्रूर और खतरनाक शासक था। सिकंदर के पास रहम नाम की कोई चीज ही नहीं थी।
सिकंदर जैसे-जैसे जीता गया उसे अपने बाहुबल पर घमंड होता है क्या सिकंदर मारने लगा कि वह एक अमर राजा बन जाएगा जिसकी मृत्यु कभी नहीं होगी।

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

अच्छे आदत अपने आप में

 दोस्तो आज हमने सब के लिए ये  लिखा है की ,  अपने आपको कैसे सुधारे!!!  पर लेख के विद्यार्थियों के लिए है. इसके लिए हमने यह लेख लिखा है और इसमें उदाहरण देकर समझाया है कि- आप अपने जीवन में किस प्रकार धीरे-धीरे परिवर्तन ला सकते है। 

अगर कोई व्यक्ति ठान ले तो कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं होता है बस आपको उस कार्य को करने की शुरुआत करनी होती है और फिर लगातार उसे पाने के सार्थक प्रयास करने होते है।

यह कहावत गलत नहीं है लेकिन आप यह कहावत सुनकर एक जगह बैठ नहीं सकते कि हम जो सोचते हैं वह कर नहीं सकते। मुश्किलें हमारे जीवन में तब तक होती हैं जब तक हम उन से लड़ते नहीं है जैसे ही हम उन से लड़ना चालू करते हैं उसी समय सारी मुश्किलें आसान हो जाती है।

इसलिए जब भी आप अपने अंदर कोई भी वांछित चाहते हैं तो उसे लगातार करते रहिए अगर आपने लगातार वह काम 10 दिनों तक निश्चित समय पर कर लिया तो फिर 11वें दिन आपको वह काम करने से कोई नहीं रोक सकता है।

हमने नीचे कुछ Points लिखे हैं जिनके कारण अक्सर ज्यादातर लोग अपने आप में सुधार नहीं कर पाते हैं या फिर कभी सफल नहीं हो पाते है। अगर आप नीचे लिखी गई सभी बातों का पालन करते हैं तो आपके जीवन में अवश्य सुधार होगा और आप सफलता के पायदान को  भी प्राप्त करेंगे।

अगर आपने लक्ष्य निर्धारित कर लिया है तो अब आप को उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगातार प्रयास करते रहना होगा. उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए आपको समय निर्धारित करना होगा और साथ ही उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए क्या करना होगा यह नहीं सोचना होगा।


रास्ता स्वयं नजर आने लगेगा 

सचित  

Sachitsharma724@gmail.Com

सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

अच्छे आदत कैसे डालें

कहा जाता है अच्छी आदतों को अपनाना मुश्किल होता है लेकिन उनके साथ जीना आसान होता है, जबकि गलत आदतें अपनाना आसान होता है लेकिन उनके साथ जीना मुश्किल होता है। जहां आपको अच्छी आदतें सफलता और ऊंचाई की ओर ले जाती हैं वहीं गलत आदतें आपको असफलता और पतन की ओर ले जाती हैं ।
महान वैज्ञानिक एडिसन से एक बार पूछा गया कि वह हर दिन 18 घंटे अपनी लैब में कार्य करते हैं फिर भी उन्हे थकान क्यों नहीं होती है, तब उन्होने जवाब दिया ‘‘ हर रोज 18 घंटे कार्य करना मेरी आदत है, इसलिए मैं नहीं थकता।पहले में लगातार तीन से चार घंटे में ही थक जाता था, पर अब 18 घंटे कार्य करने के बाद भी मैं नहीं थकता। “
आप हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के इस वाक्य से आदतों के महत्व के मूल्य को बेहतर समझ सकते हो -
‘‘ हम अपने भविष्य को नहीं बदल सकते हैं
लेकिन हम अपनी आदतें बदल सकते हैं
और हमारी आदते हमारा भविष्य बदल देती हैं ‘‘
पहले हम अपनी आदतें बनाते हैं और बाद में हमारी आदतें हम पर काबू कर लेती हैं।
मैं आपके सामने एक उदाहरण लेता हूँ जिससे सभी बाकिफ होंगे। आपने देखा होगा कि जिन्हें सुबह देर से जागने की आदत होती है, कई बार वह सुबह जल्दी जागने की कोशिश करते हैं और वह सुबह का अलार्म भी लगा लेते हैं बाद में फिर जब सुबह अलार्म बजता है तब उसे बंद करके फिर से से सो जाते हैं ।
दूसरी तरफ जिन्हे सुबह 5 बजे जागने की अच्छी आदत होती है, उन्हें हमने यह कहते हुये सुना है, ‘‘ क्या करें यार, सुबह 5 बजे मेरी जागने की आदत है, इसलिए 5 बजते ही अपने आप नींद खुल जाती है।”
इससे हम यह अनुमान बड़ी आसानी से लगा सकते हैं कि हमारे जीवन में सफलता के लिए अच्छी आदतें कितनी महत्वपूर्ण हैं।
अच्छी आदतें अपनाने का सही तरीका
जैसे ही हम यह सुनते हैं या कहीं पर पढ़ते हैं कि हमें अच्छी आदते अपनानी चाहिए, तब हम भी उन्हें अपनाने की कोशिश करते हैं। पर अधिक बार हम असफल होते हैं उन आदतों को अपनाने में, इसलिए अब हम यह जानेंगे कि आदतें अपनाने को सही तरीका क्या है ?
यहाँ हम हैल्थ से संबंधित एक उदारण लेते हैं -
बहुत सारे लोगों के साथ ऐसा होता है कि वे अपनी हैल्थ और फिटनस को लेकर अधिक गंभीर नहीं होते हैं और मान लेते हैं कि जब वे गंभीर हो जाते हैं तो वे जिम जोईन कर लेते हैं, पूरे महीने के पैसे भी भर देतें है। इसके बाद वे जिम जाना शुरू कर देते हैं और अब आप बता सकते हो कि उनमें से अधिकतर लोग कितने दिन तक जिम जाते हैं । जी हाँ अधिकतर लोग सिर्फ चार -पाँच दिन जिम जाते हैं, इसके बाद जाना बंद और back to normal life यानि दो चार दिन बाद वही पहले जैसी दिनचर्या हो जाती है।
अधिकतर लोगों के साथ ऐसा ही होता कि वे कोई नई आदत अपनाना चाहते हैं और दो-चार दिन उस आदत को अपनाने की कोशिश भी करतें हैं और इसके बाद फिर वही पहले जैसी दिनचर्या। अगर आपके साथ भी यही होता है कि आप किसी आदत को अपनाना चाहते हो पर आप यह कोशिश सिर्फ दो-चार दिन ही कर पाते हो तो उसके लिए आप यह कर सकते हो
आप जिस अच्छी आदत को अपनाना चाहते हो,
  • तो सबसे पहले उस आदत के महत्वों को अच्छी तरह से जान लें और अपने दिमाग में उन कारणों के साथ अच्छी तरह से फिट कर दें कि यह आदत अपनाना आपके लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण क्यों है।
  • इस आदत को अपनाने से आपको क्या-क्या लाभ होगें और न अपनाने पर आपको क्या-क्या नुकसान होगा, यह स्पष्ट जान लें और उन्हें अपनी डायरी में लिख लें।
  • और यदि आप किसी गलत आदत को छोड़ना चाहते हो, तो यह स्पष्ट लिख लें कि यदि आपने उस आदत को नहीं छोड़ा तो आपको क्या-क्या नुकसान हो रहा है और क्या नुकसान हो सकता है,
  • भविष्य में आपको इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
  • अब जो आपने लिखा है उसे हर रोज पढ़े और तब तक पढ़े और वह काम करें जिसे आप अपनी आदत में सामिल करना चाहते हो ।
  • यह तब तक करें जब तक की वह काम करना आपकी पूरी तरह से आदत न बन जाये।
  • आपके द्वारा लिखे हुये ये शब्दऔर फिर बार-बार उन्हें पढ़ना आपके लिए वह सकारात्मक षक्ति प्रदान करेंगें। जिससे आप हर रोज उस कार्य को कर सको
  • आपके विचारों और सोच को ठीक उसी तरह तैयार करेंगे, जैसे विचार आने पर आपने उस आदत को अपनाने का मन किया और उसे अपनाने की शुरुआत की ।
  • आपके शब्द आपके दिमाग में आने वाले उन विरोधात्मक विचारों पर काबू करने में आपकी मद्द करेंगे। जो उस आदत को अपनाने में बाधा डालेगे ।
  • साथ ही आपके शब्द आपको उस आदत को अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे।
  • ऐसे लोगों के संपर्क में रहें जिनमें वो आदत है जो आप अपनाना चाहते हैं।
  • इससे यह होगा कि उनको देखकर आपको लगेगा कि यह आदत अपनाना तो बहुत ही आसान है। क्योंकि उनमें आप देखोगे कि वह उस काम को बड़ी आसानी से करते है।
  • वे आपको उस आदत को अपनाने के लिए न सिर्फ सकारात्म सोच प्रदान करेंगे बल्कि आपकी मद्द भी करेंगे।
  • एक नई अच्छी आदत डालने या बुरी आदत छोड़ने के लिए कितना समय लगता है ?
    • आप यह याद रखे कि मनोविज्ञान के अनुसार एक नई आदत को पूरी तरह से अपनाने या किसी आदत को बदलने के लिए हमें कम से कम 21 दिन का समय लगता है।
    • इसका मतलब हुआ कि हमें 21 दिन तक खुद को उस आदत को अपनाने के लिए न सिर्फ बार-बार मोटिवेट करना पड़ेगा।
    • बल्कि हमें खुद को 21 दिन तक थोड़ा बहुत फोर्स भी करना पड़ेगा, जब तक कि हम पूरी तरह उस आदत को न अपना लें।
    उदाहरण के लिए हम मान लेते हैं कि आप सुबह जल्दी जागने की आदत अपनाना चाहेते हैं -
    • अगर ऐसा हुआ कि आप 5 दिन तक सुबह जल्दी जाग गये और छठे दिन आप नहीं जाग पाये।
    • तब सातवें दिन को आपको अपला दिन मानकर फिर से 21 दिन तक यह आदत अपनाने की कोशिश करनी होगी।
    • बेहतर यह है कि आपको 21 दिन तक जो काम करना है उसकी 21 पर्चियाँ बना लें और जैसे ही आप उस काम को करते चले जायें एक पर्ची कम करते चलें।
    • यह सब एक प्रतियोगिता समझकर करें।
    एक साथ कई अच्छी आदत अपनाना
    लोगों की एक परेशानी और है, अगर उन्हें यह पता चलता है कि उन्हें सफलता के लिए अच्छी आदतें डालनी पड़ती हैं। तो वे रातों-रात अपनी सभी आदतें बदलना चाहते हैं।
    यहाँ मैं आपके सामने एक उदाहरण बताना चाहूँगा-
    अक्सर हमने देखा कि युवा वर्ग के लोग सुबह के समय दौड़ने और व्यायाम करने के लिए सुबह जल्दी जागने की आदत डालने की कोशिश करते हैं ।
    • सुबह वह जल्दी जाग भी जाते हैं और पहले ही दिन से जोश-जोश में व्यायाम अधिक कर लेते हैं या फिर अधिक दौड़ लेते हैं।
    • फिर कुछ समय बाद उन्हें थकान महसूस होती है और नींद आने लगती है।
    • वह देखते हैं कि उनके पास समय है 10-15 मिनट वह आराम से सो सकते हैं और फिर जब वह सो जाते हैं तो काफी लंबे समय बाद नींद खुलती है। जिससे बाद में उनके दूसरे काम बिगड़ने लगते हैं ।
    • इसलिए फिर वे सोचते हैं कि सुबह का जागना ही ठीक नहीं है और वापस से वही पहले जैसी दिनचर्या ।
    • अगर वहीं पर वह युवा जो सुबह जागने की आदत डालना चाहता है, तो वह यह करे कि 21 दिन तक वह सिर्फ सुबह जागे और जागने के बाद वह कार्य करें जिसमें उसे मजा आये, जिसमें उसे रुची हो।
    • इसके बाद जब सुबह जागने की आदत मजबूत हो जायेगी , तो फिर धीरे-धीरे व्यायाम करने की आदत डालें। और याद रखें कि शुरुआत में व्यायाम उतना ही करें कि आप थक न पाओ।
    • अगर आप सोच रहे होंगे कि इससे तो आपको सुबह जागकर व्यायाम करने की आदत डालने में अधिक समय लगेगा।
    • तब आप यह जान लें कि आपके आस-पास कई ऐसे लोग होंगे या आप खुद भी हो सकते हो जो कई सालों से सुबह जागकर व्यायाम करने की आदत डालना चाहते रहे होंगे पर आज तक नहीं कर पाये हो।
    • इसलिए हमेशा यही कहा जाता है कि एक बार में एक ही आदत को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए
    • एक बार में एक ही आदत को बदलने की कोशिश करें । एक साथ कई आदते बदलने के चक्कर में व्यक्ति एक भी आदत नहीं बदल पाता है।
    एक बार अच्छी आदतें बन जाये तो फिर क्या करें ....
    • अच्छी आदतें अपनाना कठिन है पर कब वह आदत छूट जाये, यह पता भी नहीं चलता है। इसलिए एक बार मेहनत करके आपने अच्छी आदत बना ली है तो उसे बनाये रखें।
    • आपने देखा होगा कि अगर किसान खेत को खाली छोड़ देता है, उसमें कोई भी बीज नहीं बोता हैं तब जाहिर है कि उस खेत में चारा उग आता है, जिसका कोई लाभ किसान को नहीं होता है।
    • ठीक खेत की तरह ही हमारी जिंदगी है, अगर हम हमारी जिंदगी में अच्छी आदतें नहीं अपनाते हैं। तो स्वभाविक है गलत आदतें हम में अपने आप आ जाती हैं उनसे हमें कोई भी लाभ नहीं होता है। और वे आदतें हमारी जिंदगी को कठिन बनाती जाती हैं।
    • ध्यान देने वाली बात यह है कि जब किसान खेत में बीज बोता है, तब उस बीज की फसल के साथ-साथ भी खेत में चारा उग आता है और वह चारा फसल की अच्छी पैदावार में बाधा पहँुचाता हैं। इसलिए फसल की पैदाबार बढ़ाने के लिए, किसान उस खेत से चारा निकालता है।
    • वैसे ही हमारे अंदर अच्छी आदतें होने के साथ-साथ गलत आदतें आने लगती हैं जिनका हमें ध्यान रखना होता है और समय-समय पर उन्हें बाहर निकालना होता है।
    अगर आप एक बेहतर स्टूडेंट बनना चाहते हो तब आपको हर रोज पढ़ना होगा ।
    • हर रोज उतने घंटे पढ़ना होगा जितने घंटे आपको पढ़ने की आवश्यकता है, उतने घंटे पढ़ने की आदत डालना अति आवश्यक है।
    • आपको वह सब आदतें डालने पड़ेगी जो एक अच्छे स्टूडेंट में होना चाहिए।
    • आप हर रोज अधिक समय पढ़ने को देना होगा, आपको हर रोज पढ़ने की आदत डालनी होगी।
    • ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप एक दिन पढ़ लो फिर दो दिन न पढ़ो, चार दिन पढ़ लो फिर आठ दिन न पढ़ो।
    • अगर आपने कई दिनो से किताब न उठाई हो और फिर आप एकाएक पढ़ने बैठते हो तो स्वभाविक कि आप जल्दी थक जाओगे या आप बोरियत मेहसूस करने लग जाओगे।
    अगर आप एक सफल लेखक बनना चाहते हो, तब आपको हर रोज लिखने की आदत डालनी पड़ेगी। आपको वह आदतें अपनानी पड़ेगी जो एक सफल लेखक में होनी चाहिए।
    अगर आप अच्छे गायक, अच्छे खिलाड़ी या और कोई भी अन्य प्रोफेसन हो, जिसमें आपकी रूची हो, जिसमें आप अपना भविश्य बनाना चाहते हो।
    तब आपको हर रोज उस कार्य को करने की जरूरत है, जिससे आप अपने प्रोफेसन में सफल हो सको।
    आपका कोई भी फील्ड हो, किसी भी चीज में आपको रूची हो, अगर हर रोज कम से कम 5 से 6 घंटे बिना थके आप वह कार्य नहीं कर रहे हो, जो आपको करना चाहिए, तब इस बात की संभावना अधिक है कि आप उस कार्य में अधिक सफल नहीं हो सकते हो।
    अगर आप सिर्फ सफल होने की चाह नहीं रखते हो, मुझे सफल व्यक्ति बनना है सिर्फ यह कहते नहीं रहना है।
    बल्कि आप अपनी सफलता के प्रति गंभीर हो, तब आपको और अधिक समय बर्बाद किये बिना, अपने आप पर और अपनी आदतों पर गौर करना होगा और अपनी आदतों को ऐसा बनायें जिससे आप अपने लक्ष्य तक अपने निर्धारित समय में पहुंच सके ।
    आप किसी भी प्रोफेसन में हो, आपको जितनी बड़ी सफलता चाहिए, उतनी बड़ी और मजबूत अच्छी आदतें आपको अपनानी होंगी ।
    • आपका जो मुख्य कार्य है वह आपकी आदत होनी चाहिए, वह आपका डिफोल्ट नेचर होना चाहिए,
    • ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसके लिए आपको हर रोज खुद को मोटिवेट करना पढ़े या उस कार्य को करने के लिए सोचना पड़े।
    • बल्कि ऐसा होना चाहिए कि आपको पता ही न चलता हो कब आप उस कार्य को करने लग जाते हो ।
    • और जब आप उस कार्य को करने लग जाते हो तब समय कम पड़ जाता है न की आप बोरियत महसूस करते हो और समय निकल जाता है।
    आपकी सफलता का पूरा खेल आपकी आदतों पर टिका है, इसलिए यह अत्याधिक महत्वपूर्ण है कि जो आदतें आपको आपके लक्ष्य की तक पहुंचने में मदद करें, उन्हें अपना लें और जो गलत आदतें आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा बनें उन्हें छोड़ दें।
    अपने लिए बड़े लक्ष्य बनाइये और फिर उन तक पहॅुचने के लिए श्रेष्ठ व मजबूत अच्छी आदतें अपनाकर अपनी सफलता सुनिश्चित करें।
    धन्यवाद.

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

Poverty

Poverty (गरीबी)Concepts, Reasons, Types and Diagnosis

गरीबी एवं बेरोजगारी – अवधारणा, कारण, प्रकार और निदान

निर्धनता या गरीबी को आमतौर पर न्यूनतम स्तर वाली आय में रहने वालों और कम उपभोग करने वालों के अर्थ में परिभाषित किया जाता है व्यक्तियों या परिवारों द्वारा जो स्वास्थ्य सक्रिय और सभ्य जीवन के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं को वहन नहीं कर पाते वह निर्धनता या गरीब कहा जाता है /

गरीबी की अवधारणा ( Concept of poverty )

गरीबी भूख है और उस अवस्था में जुड़ी हुई है निरन्तरता। यानी सतत् भूख की स्थिति का बने रहना। गरीबी है एक उचित रहवास का अभाव, गरीबी है बीमार होने पर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ ले पाने में असक्षम होना, विद्यालय न जा पाना और पढ़ न पाना।
गरीबी है आजीविका के साधनों का अभाव और दिन में दोनों समय भोजन न मिल पाना। छोटे-बच्चों की कुपोषण के कारण होने वाली मौतें गरीबी का वीभत्स प्रमाण है और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में शक्तिहीनता, राजनैतिक व्यवस्था में प्रतिनिधित्व न होना और अवसरों का अभाव गरीबी की परिभाषा का आधार तैयार करते हैं।
मूलत: सामाजिक और राजनैतिक असमानता, आर्थिक असमता का कारण बनती है। जब तक किसी व्यक्ति, परिवार, समूह या समुदाय को व्यवस्था में हिस्सेदारी नहीं मिलती है तब तक वह धीरे-धीरे विपन्नता की दिशा में अग्रसर होता जाता है।
यही वह प्रक्रिया है जिसमें वह शोषण का शिकार होता है, क्षमता का विकास न होने के कारण विकल्पों के चुनाव की व्यवस्था से बाहर हो जाता है, उसके आजीविका के साधन कम होते हैं तो वह सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में निष्क्रिय हो जाता है और निर्धनता की स्थिति में पहुंच जाता है।
शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में बड़ी संख्या में महिलायें और बच्चे कचरा बीनने और कबाड़े का काम करते हैं। यह काम भी न केवल अपने आप में जोखिम भरा और अपमानजनक है बल्कि इस क्षेत्र में कार्य करने वालों का आर्थिक और शारीरिक शोषण भी बहुत होता है।
विकलांग और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के समक्ष सदैव दोहरा संकट रहा है।  जहां एक ओर वे स्वयं आय अर्जन कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं वहीं दूसरी ओर परिवार और समाज में उन्हें उपेक्षित रखा जाता है।
कई लोग गरीबी के उस चरम स्तर पर जीवनयापन कर रहे हैं जहां उन्हें खाने में धान का भूसा, रेशम अथवा कपास के फल से बनी रोटी, पेंज, तेन्दुफल, जंगली कंद, पतला दलिया और जंगली वनस्पतियों का उपयोग करना पड़ रहा है।
वर्तमान संदर्भो में गरीबी को आंकना भी एक नई चुनौती है क्योंकि लोक नियंत्रण आधारित संसाधन लगातार कम हो रहे हैं और राज्य व्यवस्था इस विषय को तकनीकी परिभाषा के आधार पर समझना चाहती है।
संसाधनों के मामले में उसका विश्वास केन्द्रीकृत व्यवस्था मंस ज्यादा है इसीलिये उनकी नीतियां मशीनीकृत आधुनिक विकास को बढ़ावा देती हैं, औद्योगिकीकरण उनका प्राथमिक लक्ष्य है, बजट में वे जीवनरक्षक दवाओं के दाम बढ़ा कर विलासिता की वस्तुओं के दाम कम करने में विश्वास रखते हैं, किसी गरीब के पास आंखें रहें न रहें परन्तु घर में रंगीन टीवी की उपलब्धता सुनिश्चित करने में सरकार पूरी तरह से जुटी हुई है।
हमारे सामने हर वर्ष नये आंकड़े और सूचीबद्व लक्ष्य रखे जाते हैं, व्यवस्था में हर चीज को, हर अवस्था को आंकड़ों में मापा जा सकता है, हर जरूरत को प्रतिशत में पूरा किया जा सकता है और इसी के आधार पर गरीबी को भी मापने के मापदण्ड तय किये गये हैं।
ऐसा नहीं है कि गरीबी को मिटाना संभव नहीं है परन्तु वास्तविकता यह है गरीबी को मिटाने की इच्छा कहीं नहीं है। गरीबी का बने रहना समाज की जरूरत है, व्यवस्था की मजबूरी है और सबसे अहम बात यह है कि वह एक मुद्दा है।
अमर्त्य सेन लिखते हैं कि ”लोगों को इतना गरीब नहीं होने देना चाहिये कि उनसे घिन आने लगे, या वे समाज को नुकसान पहुंचानें लगें।
इस नजरिये में गरीबों के कष्ट और दुखों का नहीं बल्कि समाज की असुविधाओं और लागतों का महत्व अधिक प्रतीत होता है। गरीबी की समस्या उसी सीमा तक चिंतनीय है जहां तक कि उसके कारण, जो गरीब नहीं हो, उन्हें भी समस्यायें भुगतनी पड़ती है।”

गरीबी के आधार ( Basis of poverty )

भारत में गरीबी रेखा को परिभाषित करना हमेशा से ही एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, विशेष रूप से 1970 के मध्य में जब पहली बार इस तरह की गरीबी रेखा का निर्माण योजना आयोग द्वारा किया गया था जिसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमश: एक वयस्क के लिए 2,400 और 2,100 कैलोरी की न्यूनतम दैनिक आवश्यकता को आधार बनाया गया था।
खेतों से जुड़ती गरीबी ( Poverty associated with farmland ):-
पारम्परिक रूप से मध्यप्रदेश का समाज प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि को ही जीवन व्यवस्था का आधार बनाता रहा है। इसी कृषि व्यवस्था के कारण वह विपरीत परिस्थितियों जैसे बाढ़, सूखा या आपातकालीन घटनाओं से जूझने की क्षमता रखता था।
खेती में भी उसका पूरा विश्वास ऐसी फसलों में था जो उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती थीं जैसे- ज्वार, बाजरा, कौंदो-कुटकी।
विकास से बढ़ता अभाव ( Lack of development ):-
विकास के नाम पर बड़ी परियोजनाओं को शासकीय स्तर पर बड़ी ही तत्परता से लागू किया जा रहा है। इन परियोजनाओं में बांध, ताप विद्युत परियोजनायें, वन्य जीव अभ्यारण्य शामिल हैं जिनके कारण हजारों गांवों को विस्थापन की त्रासदी भोगनी पड़ी और उन्हें अपनी जमीन, घर के साथ-साथ परम्परागत व्यवसाय छोड़ कर नये विकल्पों की तलाश में निकलना पड़ा।
नई नीतियों के अन्तर्गत लघु और कुटीर उद्योग लगातार खत्म होते गये हैं। जिसके कारण गांव और कस्बों के स्तर पर रोजगार की संभावनायें तेजी से घट रही हैं। कई उद्योग और मिलें बहुत तेजी से बंद हो रहे हैं और वहां के श्रमिक संगठित या पंजीकृत नहीं है, ऐसी स्थिति में उनके संकट ज्यादा गंभीर हो जाते हैं।
सामाजिक व्यवस्था और गरीबी ( Social order and poverty ):-
मध्यप्रदेश के चंबल और विन्ध्य क्षेत्र ऐसे हैं जहां सामाजिक भेदभाव अपने चरम पर है। यहां ऊॅंची और नीची जाति के बीच चिंतनीय भेद नजर आता है। इन क्षेत्रों में नीची जाति के लोगों के साथ खान-पान संबंधी व्यवहार नहीं रखा जाता है, न ही उन्हें धार्मिक और सामाजिक समारोह में शामिल होने या स्थलों में जाने की इजाजत होती है।
इन्हीं क्षेत्रों में कई समुदाय गरीबी और सामाजिक उपेक्षा के कारण निम्नस्तरीय पारम्परिक पेशों में संलग्न हैं। यहां जातिगत देह व्यापार, जानवरों की खाल उतारना, सिर पर मैला ढोना जैसे पेशे आज भी न केवल किये जा रहे है बल्कि इन समुदाय के लोगों को सम्मानित पेशों में शामिल होने से रोका जा रहा है।

निर्धनता के प्रकार ( Types of poverty )

यह दो प्रकार की होती है—
  1. सापेक्ष निर्धनता- सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न वर्गों , प्रदेशों और देशों की तुलना में पाई जाने वाली निर्धनता से है
  2. निरपेक्ष निर्धनता-निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है
निर्धनता रेखा- वह रेखा है जो उस प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं*

गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा के मायने( Food Safety Matters for the Poor ):-

भारत में 35 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे रहकर अपना जीवन गुजारते हैं। अपने आप में यह जानना भी जरूरी है कि कौन गरीबी की रेखा के नीचे माना जायेगा।
भारत में गरीबी की परिभाषा तय करने का दायित्व योजना आयोग को सौंपा गया है। योजना आयोग इस बात से सहमत है कि किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये न्यूनतम रूप से दो वस्तुयें उपलब्ध होनी चाहिए:-
  • संतोषजनक पौष्टिक आहार, सामान्चय स्तर का कपड़ा, एक उचित ढंग का मकान और अन्य कुछ सामग्रियां, जो किसी भी परिवार के लिए जरूरी है।
  • न्यूनतम शिक्षा, पीने के लिये स्वच्छ पानी और साफ पर्यावरण।
  • गरीबी के एक मापदण्ड के रूप में कैलोरी उपयोग (यानी पौष्टिक भोजन की उपलब्धता) को भी स्वीकार किया जाता है।
अभी यह माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर को औसत रूप से स्वस्थ रखने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 2410 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2070 कैलोरी की न्यूनतम आवश्यकता होती है। इतनी कैलोरी हासिल करने के लिये गांव में एक व्यक्ति पर 324.90 रूपये और शहर में 380.70 रूपये का न्यूनतम व्यय होगा।

गरीबी की रेखा और गरीबी ( Poverty line and poverty )

योजना आयोग (अब नीति आयोग) हर वर्ष के लिए समय-समय पर गरीबी रेखा और गरीबी अनुपात का सर्वेक्षण करता है जिसके सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) बड़े पैमाने पर घरेलू उपभोक्ता व्यय के सैंपल सर्वे लेकर कार्यान्वित करता है।
आम तौर पर इन सर्वेक्षणों को पंचवार्षिक आधार (हर 5 वर्ष में) पर किया जाता है। हालांकि इस श्रृंखला में पिछले पाँच साल का सर्वेक्षण, 2009-10 (एनएसएस का 66वां दौर) में किया गया था। 2009-10 का वर्ष भारत में गंभीर सूखे की वजह से एक सामान्य वर्ष नहीं था,
एनएसएसओ ने 2011-12 में बड़े पैमाने पर एक बार फिर सर्वेक्षण (एनएसएसओ का 68वां दौर) किया। योजना आयोग ने गरीबी की रेखा को गरीबी मापने का एक सूचक माना है और इस सूचक को दो कसौटियों पर परखा जाता है।
  1. पहली कैलोरी का उपयोग और
  2. दूसरी कैलोरी पर खर्च होने वाली न्यूनतम आय।
इसे दो अवधारणों में प्रस्तुत किया जाता है:-
गरीबी की रेखा:- आय का वह स्तर जिससे लोग अपने पोषण स्तर को पूरा कर सकें, वह गरीबी की रेखा है।
गरीबी की रेखा के नीचे:- वे लोग जो जीवन की सबसे बुनियादी आवश्यकता अर्थात् रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था नहीं कर सके, गरीबी की रेखा के नीचे माने जाते हैं।

भारत में गरीबी के कारण ( Reason of Poverty in India):-

भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या दर है। इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और वित्तीय संसाधानों की कमी की दर बढ़ती है।
इसके अलावा उच्च जनसंख्या दर से प्रति व्यक्ति आय भी प्रभावित होती है और प्रति व्यक्ति आय घटती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत की आबादी सन् 2026 तक 1.5 बिलियन हो सकती है और भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला राष्ट्र हो सकता है।
भारत की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उस रफ्तार से भारत की अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही।इसका नतीजा होगा नौकरियों की कमी।इतनी आबादी के लिए लगभग 20 मिलियन नई नौकरियों की जरुरत होगी।
यदि नौकरियों की संख्या नहीं बढ़ाई गई तो गरीबों की संख्या बढ़ती जाएगी। बुनियादी वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतें भी गरीबी का एक प्रमुख कारण हैं। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति के लिए जीवित रहना ही एक चुनौती है। भारत में गरीबी का एक अन्य कारण जाति व्यवस्था और आय के संसाधनों का असमान वितरण भी है।
इसके अलावा पूरे दिन मेहनत करने वाले अकुशल कारीगरों की आय भी बहुत कम है। असंगठित क्षेत्र की एक सबसे बड़ी समस्या है कि मालिकों को उनके मजदूरों की कम आय और खराब जीवन शैली की कोई परवाह नहीं है। उनकी चिंता सिर्फ लागत में कटौती और अधिक से अधिक लाभ कमाना है।
उपलब्ध नौकरियों की संख्या के मुकाबले नौकरी की तलाश करने वालों की संख्या अधिक होने के कारण अकुशल कारीगरों को कम पैसों में काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। सरकार को इन अकुशल कारीगरों के लिए न्यूनतम मजदूरी के मानक बनाने चाहिये।
इसके साथ ही सरकार को यह भी निश्चित करना चाहिये कि इनका पालन ठीक तरह से हो। हर व्यक्ति को स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है इसलिए भारत से गरीबी को खत्म करना जरुरी है।
निर्धनता के कारण
1-राष्ट्रीय उत्पाद का निम्न स्तर
2-विकास की कम दर
3-कीमतों में वृद्धि
4-जनसंख्या का दबाव
5-बेरोजगारी
6-पूंजी की कमी
7-कुशल श्रम और तकनीकी ज्ञान की कमी
8-उचित औद्योगीकरण का अभाव
9-सामाजिक संस्थाएं

भारत में गरीबी के आर्थिक-सामाजिक-प्राकृतिक कारण ( Economic-social-natural causes of poverty in India )

आश्चर्य की बात है कि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध माना जाने वाला हमारा देश वैश्विक मानदंडों पर गरीब देशों की श्रेणी में आता है। देश की विशाल जनसंख्या देश में गरीबी का संभवतः सबसे बड़ा कारण है, क्योंकि लगातार होने वाली जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय को कम करती है।
जितना बड़ा परिवार, उतनी ही कम प्रति व्यक्ति आय। भूमि और सम्पत्ति का असमान वितरण भी गरीबी का एक अन्य कारण है।
इसके अलावा, देश में मौसम की दशाएँ अर्थात् प्रतिकूल जलवायु लोगों के कार्य करने की क्षमता कम करती है और बाढ़, अकाल, भूकंप तथा चक्रवात आदि उत्पादन को बाधित करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की 2015 में जारी सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में सबसे अधिक भूख से पीड़ित लोग भारत में हैं। विगत 10 वर्षों में गरीबी आधी हो गई है, फिर भी 27 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से नीचे निवास करते हैं, जिनकी आय 1.25 डॉलर प्रतिदिन से कम है।
यहाँ की एक चौथाई जनसंख्या कुपोषण का शिकार है और लगभग एक तिहाई जनसंख्या भूख से पीड़ित है।

भारत के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी (Women’s participation in the labor force of India)

भारतीय श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी का एक कारण यहाँ शिक्षा की नामांकन दर में होने वाली वृद्धि है जिसके कारण कई युवा महिलाएँ शिक्षा को प्राथमिकता देती हैं|  इसका एक अन्य कारण यह भी है कि भारत में कई महिला कामगार यह सोचती हैं कि काम केवल तभी किया जा सकता है जब उसकी आवश्यकता हो|
वे काम को आर्थिक अवसर नहीं मानती हैं| भारतीय महिलाओं में मुख्यतः गरीब, ग्रामीण और निरक्षर महिलाएँ ही श्रम बल में भागीदारी करती हैं| वास्तव में, धनी घरों की महिलाएँ इसका एक अपवाद हैं क्योंकि उनमें महिलाओं की आय की दर अधिक पाई गई है|
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाएँ या तो निरक्षर होती हैं अथवा स्नातक होती हैं| अतः उनके काम करने की सम्भावना अधिक होती है| परन्तु माध्यमिक स्तर की शैक्षणिक विशेषताओं वाली महिलाएँ श्रम बल में भागीदारी नहीं करती हैं|
वस्तुतः एक स्थूल सच्चाई यह है की भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएँ केवल घरेलू कार्य ही करती हैं|
यद्यपि आज पितृसत्तात्मक समाज के दृष्टिकोणों में बदलाव हो रहा है परन्तु इसकी गति अपेक्षाकृत मंद है| भारत का युवा वर्ग पहले की तुलना में महिलाओं के प्रति अधिक उदार बन चुका है| 35 वर्ष तक की आयु वाले आधे से भी कम युवा पुरुष और महिलाएँ यह विश्वास करते हैं कि महिलाओं के लिये विवाहोपरांत कार्य करना उचित है|
भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार आवश्यक है परन्तु इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो तथा वे स्वयं को भारतीय समाज से विलग न समझकर इसका ही एक हिस्सा समझें|
उल्लेखनीय है कि भारतीय समाज में आज भी कई ऐसी महिलाएँ हैं जो कुशल होने के बावजूद भी हर क्षेत्र में पिछड़ जाती है| अतः आवश्यकता इस बात की है कि इन महिलाओं को परिवर्तन की मुख्यधारा में लाया जाए और भारत को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाया जाए|

गरीबी और बेरोज़गारी का संबंध ( Relation to poverty and unemployment )

भारत में 2011 में हुई जनगणना के अनुसार, काम खोज रहे लोगों (जिनके पास कोई काम नहीं था) की संख्या 6.07 करोड़ थी, जबकि 5.56 करोड़ लोगों के पास सुनिश्चित काम नहीं था।
इस प्रकार कुल 11.61 करोड़ लोग सुरक्षित और स्थायी रोज़गार की तलाश में थे। यह संख्या वर्ष 2021 में बढ़कर 13.89 करोड़ हो जाने की संभावना है।
वर्ष 2001 से वर्ष 2015 के बीच भारत में 2,34,657 किसानों और खेतिहर श्रमिकों ने आत्महत्या की, क्योंकि न तो उन्हें उत्पाद का उचित मूल्य मिला, न बाजार में संरक्षण मिला और न ही आपदाओं की स्थिति में सम्मानजनक तरीके से राहत मिली।.
राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार, भारत में वर्ष 2001 से 2015 के बीच 72,333 लोगों ने गरीबी और बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या की। देश में रोज़गार की लोचशीलता में निरंतर कमी आ रही है, जिससे रोज़गार के अवसरों में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है।
ऐसे में यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि भारतीय व्यवस्था के अनुरूप कृषि और औद्योगिकीकरण की नीति को प्रोत्साहित किया जाए, जो रोज़गार के अवसरों में वृद्धि करने में निश्चित ही सहायक होगा।

भारत-चीन गरीबी की तुलना ( Comparison of India-China poverty )

अब चीन गरीबी पूरी तरह हटाने की योजना बना रहा है। चीन के शीर्ष नीति निर्धारकों में इस बात पर सहमति बनी है कि गरीबी को पूरी तरह तभी दूर किया जा सकता है, जब वर्तमान नीतियों और विकास की रफ्तार को बनाए रखा जाए।
चीन यह मानता है कि गरीबी दूर करने के प्रयासों में बेहद निचले स्‍तर की गरीबी और लक्षित उपायों की कमी और पैसे की निगरानी में लापरवाही जैसी समस्याएं अब भी बनी हुई हैं। चीन की बड़ी आबादी गरीबी से जूझ रही है।
चीन के महानगरों में करोड़पतियों की संख्‍या लाखों में है, लेकिन गरीबों की संख्‍या करोड़ों में है, लेकिन चीन उन देशों में शामिल हैं, जिसने विगत वर्षों में तेज़ी से अपनी गरीबी कम की है।
आज से लगभग चार दशक पूर्व चीन की आर्थिक स्थिति भारत से कमतर थी। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक तब चीन में भारत से 26% अधिक गरीब थे।
1978 के बाद चीन में तेजी से आर्थिक सुधार हुए और 2015 में भारतीयों के मुकाबले चीनी पांच गुना अधिक अमीर हो गए चीन में भूमि सुधार, शिक्षा व्यवस्था में विस्तार और जनसंख्या नियंत्रण के लिये उठाए कदमों ने चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया।
1978 में जब चीन में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थो उसकी प्रति व्यक्ति आय 155 डॉलर थी, जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय 210 डॉलर थी। भारत में आर्थिक सुधारों का सिलसिला 1991 में शुरू हुआ। उस समय चीन में प्रति व्यक्ति आय 331 डॉलर थी, जबकि भारत में प्रति व्यक्ति आय 309 डॉलर थी।
1991 के बाद से भारत में प्रति व्यक्ति आय केवल 5 गुना बढ़ी तो इस दौरान चीन में प्रति व्यक्ति आय में 24 गुना वृद्धि हुई। 2015 में चीन में प्रति व्यक्ति आय 7925 डॉलर और भारत में प्रति व्यक्ति आय 1582 डॉलर थी। चीन की स्थिति भारत से कहीं ज्यादा बेहतर है!

निर्धनता मापन की विभिन्न समितियां ( Various committees of poverty measurement )

तत्कालिन योजना आयोग ने सितंबर 1989 में प्रोफेसर डी.टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में एक विशेष समूह की नियुक्ति की जिसने प्रति व्यक्ति कैलोरी उपभोग को आधार बनाते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति उपभोग को आधार माना है
भारत में सर्वप्रथम गरीबी का अध्ययन श्री बी एस मिन्हास ने किया और उन्होंने 1956-57 तथा 1967-68 के बीच गांव के निर्धनों के प्रतिशत में कमी होने के संकेत दिए
लोरेंज वक्र- द्वारा किसी देश के लोगों के बीच आई विषमता को मापा जाता है, गिनी गुणांक को इटालियन कोरेडो गिनी ने विकसित किया था
1. लकड़वाला समिति ( Lakadavala committee )-
समिति ने अपने फार्मूले में शहरी निर्धनता के आकलन के लिए औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनाया है
2. सुरेंद्र तेंदुलकर समिति ( Surendra Tendulkar Committee) –
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र तेंदुलकर की रिपोर्ट गरीबी का आंकड़ा 37.2% प्रतिशत बताती है
✍?देश में निर्धनता अनुपात का आकलन योजना आयोग द्वारा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के माध्यम से किया जाता था इसके अनुसार 2012 में गरीबी रेखा के नीचे 22% लोग थे
✍?निर्धनों की निरपेक्ष संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश का स्थान जहां सबसे ऊपर है वहीं निर्धनता अनुपात के मामले में (कुल जनसंख्या में निर्धन जनसंख्या का प्रतिशत )ओडिशा (46.8%)का स्थान सर्वोच्च है भारत में राज्यों में न्यूनतम निर्धनता जम्मू कश्मीर में है जबकि संपूर्ण भारत में सबसे कम निर्धनता अंडमान निकोबार (0.4%) में है
3. रंगराजन समिति ( Rangarajan Committee )-
मनमोहन सिंह की सरकार में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख सी. रंगराजन ने गरीबी के आकलन पर तेंदुलकर समिति की कार्यपद्धति की समीक्षा की थी| योजना आयोग ने देशभर में गरीबों की संख्या के संबंध में विवाद पैदा होने के मद्देनजर गरीबी के आकलन के लिए तेंदुलकर समिति की पद्धति की समीक्षा के लिए मई 2012 में तत्कालीन सी. रंगराजन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समूह का गठन किया था।
रंगराजन समिति के अनुसार शहरों में प्रतिदिन ₹45 तक खर्च कर सकने वाले व्यक्ति को ही गरीब की श्रेणी में रखा जाए जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह सीमा ₹32 है औसत माहवार खर्चे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में ₹972 प्रतिमाह से कम और शहरों में 1407 से कम प्रतिमाह कमाने वालों को गरीब माना जाएगा
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु ( Main point of report )
  • 2009-10 में 38.2 प्रतिशत आबादी गरीब थी जो 2011-12 में घटकर 29.5 प्रतिशत पर आ गई।
  • इसके विपरीत तेंदुलकर समिति ने कहा था कि 2009-10 में गरीबों की आबादी 29.8 प्रतिशत थी जो 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत रह गई।
  • कोई शहरी व्यक्ति यदि एक महीने में 1,407 रुपये (47 रुपये प्रतिदिन) से कम खर्च करता है तो उसे गरीब समझा जाए, जबकि तेंदुलकर समिति के पैमाने में यह राशि प्रति माह 1,000 रुपए (33 रुपये प्रतिदिन) थी।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति माह 972 रुपये (32 रुपये प्रतिदिन) से कम खर्च करने वाले लोगों को गरीबी की श्रेणी में रखा है, जबकि तेंदुलकर समिति ने यह राशि 816 रुपये प्रति माह (27 रुपये प्रतिदिन) निर्धारित की थी।
  • 2011-12 में भारत में गरीबों की संख्या 36.3 करोड़ थी, जबकि 2009-10 में यह आंकड़ा 45.4 करोड़ था।
  • तेंदुलकर समिति के अनुसार, 2009-10 में देश में गरीबों की संख्या 35.4 करोड़ थी जो 2011-12 में घटकर 26.9 करोड़ रह गई।
  • आशा है कि समिति की इस रिपोर्ट से देश में गरीबों की संख्या के बारे में जो संशय बना था वह दूर हो जाएगा।
  • विशेषज्ञ समूह को अपनी रिपोर्ट गठन के 7 से 9 माह में देनी थी,इसे कई बार विस्तार दिया गया।
  • उल्लेखनीय है कि गरीबी के बारे में व्यक्त अनुमान को लेकर योजना आयोग को तब कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी जब उसने सितंबर 2011 में सर्वोच्च न्यायालय में दिए एक हलफनामे में यह कहा कि शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 32 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपये प्रति व्यक्ति दैनिक खर्च करने वाला गरीब नहीं है।
  • तेंदुलकर पद्धति पर आधारित पिछले वर्ष जुलाई में जारी आयोग के अनुमान के अनुसार देश में गरीबी का अनुपात 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत रह गया जो कि 2004-05 में 37.2 प्रतिशत पर था।
बीपीएल जनसंख्या में भारतीय राज्यों की स्थिति
यह बहुत ही दयनीय स्थिति है कि, भारत को एक विकासशील देश भी कहा जाता है और अभी भी यहां गरीबी रेखा से नीचे इतनी बड़ी आबादी रहती है।

Poverty important facts –

  • सामान्य रूप से भारत में 15 से 59 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्तियों को आर्थिक रुप से सक्रिय माना जाता है
  • भारत में बेरोजगारी से संबंधित आंकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा जारी किए जाते हैं
  • वार्षिक रोजगार के आकलन के लिए कार्य दिवसों की मानक संख्या 270 है
  • अगर किसी व्यक्ति के पास 35 दिनों से भी कम दिनों का रोजगार वह तो राष्ट्रीय स्तर तक उसे पूर्ण बेरोजगार मान लिया जाता है यदि उसके कार्य दिवस पर 30 दिनों से ज्यादा एवं 135 से कम दिनों का हो तो उसे अर्थ बेरोजगार माना जाता है वह 135 दिनों से ज्यादा दिनों के रोजगार की स्थिति हो तो उसे पूर्ण रोजगार कहा जाएगा
thanks again to Read 
sachit sharma 




बुधवार, 18 अप्रैल 2018

विनम्रता को अपना अस्त्र बनाइए ! Make your weapon of humility!

                             विनम्रता को अपना अस्त्र बनाइए ! 

दोस्तों आज के दौर में यदि कोई नहीं चाहता है तो वो है आपका कट्टु वचन 


  1. व्यक्तित्व के विकास में जितना महत्त्व मितभाषी होने का होता है, उससे कहीं अधिक मृदूभाषी होने का, क्योंकि मृदूभाषी होना व्यक्ति की विनयशीलता और शिष्टाचार का परिचायक होता है। जिन लोगों में अनेकानेक गुण होते हैं किन्तु यदि वे मृदुभाषी नहीं होते हैं तो उनके गुणों का मूल्य भी घट जाता है। वैसे लोगों को अपनी कटु वाणी का दुष्परिणाम बहुधा ही भुगतना पडता है। वे परिचितों और मित्रमण्डली में भी उपेक्षित ही रहते हैं। केवल परिजन नही बल्कि परिजनों द्वारा भी वे ठुकरा दिए जाते हैं। एक व्यक्ति मात्र अपनी मीठी वाणी के कारण सम्मान का पात्र बने रहतेे है। 

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है 
  •  ''तुलसी  मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुॅं 
  • ओर बसीकरण एक मन्त्र है, तज दे वचन कठोर।।'' 


इस प्रकार हम वाणी और व्याहार में जब तक एकता न हो तब तक वाणी में शक्ति नही आती । 
सभी कार्य वाणी द्वारा नियन्त्रित होते है। वाणी उनका मूल हैं। वाणी से उनकी उत्पत्ति होती है। जो व्यक्ति वाणी से ईमानदार नही, वह सब कामों में बेईमान होता है। 

  • मधुर वाणी बोलने वाला सबके दिल में जगह बना लेता है । 
  • एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे लोग गुड़ की भाँति ग्रहनण करते हैं वही दूसरे को कडवे नीम की तरह थूक देते हैं। 
  • अप्रिय वचन बोलना वाणी का दुरूपयोग है और वाणी का दुरूपयोग व्यक्ति के पराभव और पतन का हेतु बन जाता है। 
  • दुसरो के कठोर किन्तु सत्य वचन सुनने की आदत डालनी चाहिए। 

                                                   Make your weapon of humility!

The importance of being personified in the development of personality is more soft spoken than it is, because being soft spoken becomes the person's modesty and etiquette. Those people who have many qualities, but if they are not soft-spoken, the value of their properties also decreases. Well, people have to suffer the bad consequences of their bitter words only. They remain neglected in acquaintances and friends. Not only kin, but also by families they are turned down. A person remains eligible to be respected due to his sweet voice.
Goswami Tulsidas has said
Hey sweetheart
Basisan is a mantra, it is very hard to tell. The

There is no power in speech until we are united in speech and practice.
All functions are controlled by speech. Speech is their origin Their origin is from speech. The person who is not honest with the speech, he is dishonest in all things.

The gentle voice speaker makes room in the heart of everyone.
There is such a person, people who like gud, give them spit like other neem.
Speaking of unpleasant words is a misuse of speech and misuse of speech becomes the cause of the person's defeat and fall.
Others should have a habit of listening to harsh but truthful words


Thanks.



रविवार, 15 अप्रैल 2018

मन के हारे हार है और मन के जिते जीत

मन के हारे हार है और मन के जिते जीत
यदि आप चाहते हो की मै कुछ करू तो आप ये कब से करना चाहते हो उसे काॅपी मे लिखें फिर उस के बारे ये सोचें की क्या वो आपको निगेटिव बना सकता है या पोजिटिव बना सकता है यदी आप ये सोच लेते हो तो आपका सफर शुरू हो जाता है।
आप यदी नौकरी करना चाहते हो या कोई व्यापार तो ये आपके कौशल पर निर्भर करता है ।
कुछ ऐसे लोग होते है जिन्हे शाॅर्टकट मे धन कमाना और उंचे ख्वाब मे आतुर रहते है । लेकिन वे नही जानते कि कोई भी शाॅर्टकट ज्यादा दिन तक नही रहता हैं। यदी आपको पैसे कमाने है तो हर दिन न्युज पढो फिर दिन एक नये लोगों से मिलो एक बात याद रखो की एक कहावत है ‘‘ बीसे विद्या तिसे धन ”
हाॅं ये बिल्कुल सही है आपको बीस साल तक लगातार पढना चाहिए फिर आपको 25 से 30 वर्ष के उम्र तक ेापससमक बन जाना चाहिए कहने का मतलब है कि यदी आप उंची शिक्षा पा लेते हो तो आपको किसी भी जो आपके कैरियर से संबंध है उस पर वर्क शुरू कर देना चाहिए आज कल ये देखा जाता है कि युवा सरकारी नौकरी के पीछे ज्यादा भागते है क्यों कि उसमें उन लोगों का आराम है लेकिन सच ये है कि सरकारी नौकरी के तलाश में अपने को ेापससमक  नही बना पाते है नतीजा यें होता है कि लोग अपनी उम्र के हिसाब से अच्छी नौकरी नही पाते है ।
दुसरा ये कि युवा कभी ये सांेचते है कि व्यापार कैसे करे तो ये बता दें की सरकार और बैंक से आप लोन ले सकते हो यदी आपको सरकार के योजनाओ से संबंधीत कोई शिकायत हो तो एक भारतीय 181 मे क्ंपस  कर अपने शिकायत का निवारण कर सकतें है। ं
यदी आप समय को गवातें है तो ये आपका शार्टकट धन कमाने के समान है जब धन चला जाता है तो अंत मे पछताना पडता है कि हम और भी समय क्यों नही लगाए ़
यदी हम तीन चीजों से दूरी बना ले तो हम ज्यादा समय दे सकते है वो सबसे पहले 1) घुमना  2) दोस्तों को ज्यादा समय देना 3)जंक फूड
यदी आपको अच्छी नौकरी या व्यापार करना है तो आप अपने ेापससमक  के साथ हमे बताए
धन्यवाद   
                       
If you want me to do something, then when you want to do it, write it in copy page  then think about it whether it can make you negative or make a positive, if you think this, then your journey begins. goes.
Whether you want a job or a business, it depends on your skill.
There are some people who want to earn money in the shortcut and get excited about the highs. But they do not know that any shortcut does not last for a long time. If you want to earn money, read the news every day, then meet the day one new person. Remember one thing that a saying is'
Yes, it is absolutely right that you should read continuously for twenty years and then you should become a partner by the age of 25 to 30. It means that if you get higher education, then you should work on any one who is related to your career. It should be started today. It is seen today that the young people run away from the job because they have the comfort of those people but the truth is that in search of government jobs, The result is that people do not get a good job according to their age.
Secondly, that the youth sometimes thinks how to do business, then tell them that you can take a loan from the government and the bank. If you have any complaints related to the government's plans, then an Indian can solve 181 complaints. . I
If you have time to sleep, then your shortcut is like earning money when the money goes away, then in the end it does regret that why do not we spend too much time.
If we make a distance from three things, then we can give more time, first of all 1) rotate 2) giving friends more time 3) junk food
If you want to do a good job or business, then tell us with your contacts
Thank you

विजेता अपने आप में

 यहाँ आपको जानकारी सिर्फ एक विजेता का बारे में बताने का प्रयास है उदाहरण जैसे सिकंदर महान   सिकंदर या कहें की अलेक्जेंडर द ग्रेट (356 ईपू से...